समावेशी शिक्षा की अवधारणा, अर्थ एवं आवश्यकता (Concept, meaning and need of inclusive education)
समावेशी शिक्षा की अवधारणा, अर्थ एवं आवश्यकता
समावेशी शिक्षा का अर्थ है सभी बालकों को एक साथ शिक्षित करना ।
इसका उद्देश्य अशक्त (विशेष आवश्यकता वाले) बालकों को सामान्य बालकों के साथ शामिल करके शिक्षा देना है ।
यह 'पृथक्करण' या 'अलगाव' (Exclusion) शिक्षा के विपरीत है ।
समावेशी शिक्षा
का लक्ष्य एक ऐसे सार्वभौमिक समाज का निर्माण करना है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के
लिए जगह हो ।
इसमें हर बच्चे
की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है, जैसे बौद्धिक, संवेगात्मक और
सृजनात्मक विकास ।
इसका उद्देश्य अशक्त बालकों में हीन भावना को दूर कर उन्हें समाज की मुख्यधारा में स्थापित करना है.
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समावेशी शिक्षा की
अवधारणाएँ (Assumptions of
Inclusive Education)
सभी बालक किसी न
किसी रूप से विशिष्ट होते हैं ।
सभी बालक समान
रूप से मूल्यवान हैं और भागीदारी की समान संभावना रखते हैं ।
उत्पीड़न रहित
शिक्षा प्रत्येक बालक का मौलिक अधिकार है ।
शिक्षा की
उपयुक्तता बाधा रहित वातावरण पर निर्भर करती है ।
समावेशी शिक्षा
एक सतत प्रक्रिया है ।
समावेशी शिक्षा की प्रकृति (Nature of Inclusive Education)
विविधता एवं
समानता: यह बालकों की
विभिन्नताओं को पहचानती और स्वीकार करती है और समान अवसर प्रदान करती है ।
विशिष्ट शिक्षा
आवश्यकताओं का प्रावधान: विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा के लिए समुचित प्रावधान करना राष्ट्रीय
शिक्षा संस्थान की जिम्मेदारी है ।
सहयोग एवं टीम
वर्क: इसमें शिक्षकों, विशेषज्ञों और सहायक कर्मचारियों के बीच सहयोग शामिल
है ।
विद्यालय का
प्रयत्न (अभियोजना): विद्यालय छात्रों की आवश्यकताओं के अनुसार खुद को अनुकूलित करता है ।
सुलभ शिक्षण
वातावरण: सभी बच्चों के लिए
शारीरिक और सामाजिक रूप से सुलभ वातावरण बनाना शामिल है । इसमें रैंप और समावेशी शिक्षण सामग्री शामिल हो
सकती है.
विभेदित शिक्षण
रणनीतियाँ: छात्रों की
व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार निर्देश तैयार किए जाते हैं ।
लचीली मूल्यांकन
विधियाँ: मूल्यांकन को
व्यक्तिगत विभिन्नताओं के आधार पर समायोजित किया जाता है ताकि निष्पक्ष मूल्यांकन
हो सके ।
अभिभावकों तथा समाज
की भागीदारी: समावेशी शिक्षा
प्रक्रिया में माता-पिता और समाज की भागीदारी महत्वपूर्ण है ।
अनुकूली
प्रौद्योगिकी: विभिन्न क्षमताओं
वाले बच्चों के लिए सहायक प्रौद्योगिकी और डिजिटल संसाधनों का उपयोग किया जाता है ।
शिक्षा एक मौलिक
अधिकार: समावेशी शिक्षा
छात्रों की शिक्षा के मौलिक अधिकार पर जोर देती है और भेदभाव को समाप्त करने का
लक्ष्य रखती है ।
समावेशी शिक्षा की
आवश्यकता (Need of Inclusive
Education)
संवैधानिक उत्तरदायित्व
का निर्वहन: यह बिना किसी
भेदभाव के सभी को शिक्षा का अधिकार दिलाने में मदद करती है ।
शिक्षा की
सार्वभौमिकता: यह प्रत्येक बालक
की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा के विस्तार पर बल देती है ।
गरीबी चक्र की
समाप्ति: यह सभी को समान
शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान कर गरीबी कम करने में मदद करती है ।
राष्ट्र का विकास: यह सभी नागरिकों को शिक्षा उपलब्ध कराकर राष्ट्र के विकास में योगदान करती है
शिक्षा का स्तर
बढ़ाना: यह 'सब के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा' पर आधारित है और पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों को लचीला
बनाने पर जोर देती है ।
सामाजिक समानता का
उपयोग एवं प्राप्ति: यह रंग, जाति, धर्म, लिंग या शारीरिक/मानसिक गुणों के आधार पर भेदभाव किए बिना शिक्षा प्रदान कर
सामाजिक समानता को बढ़ावा देती है ।
आधुनिकतम तकनीकों
का प्रयोग: इसमें आधुनिक
सहायक तकनीकों और साधनों के प्रयोग का प्रावधान है ।
समाज का विकास एवं
सशक्तिकरण: यह नागरिकों को
शिक्षित कर समाज के विकास और सशक्तिकरण में मदद करती है ।
परिवार के लिए
सान्त्वना एवं सन्तोषपूर्ण प्रभाव: यह अशक्त बच्चों के परिवारों को राहत और संतोष प्रदान करती है क्योंकि अब वे
सामान्य स्कूलों में पढ़ सकते हैं ।
अच्छी नागरिकता के
उत्तम गुणों का विकास: यह सहयोग, सहानुभूति, सहिष्णुता और समूह में कार्य करने जैसे गुणों को
बढ़ावा देती है, जो अच्छी
नागरिकता के लिए आवश्यक हैं ।
यह नोट्स समावेशी
शिक्षा के मुख्य बिंदुओं को कवर करते हैं और परीक्षा की तैयारी के लिए उपयोगी हो
सकते हैं।